5 राज्यों में विधानसभा चुनाव में प्रचार ने रप्तार पकड़ ली। यूं तो कोरोना के चलते बड़ी रैलियां नही हो रही है लेकिन उसके बाद भी सोशल मीडिया में प्रचार तेजी से चल रहा है। लेकिन इस बीच ये देखने को मिल रहा है कि अगर कोई राष्ट्रवाद की बात करता है तो आज उसपर कट्टरपंथी होने का आरोप लगाया जा रहा है। ऐसे में सवाल ये उठता है कि देश में राष्ट्रवाद को लेकर आखिर कुछ दलो को परेहेज क्यो हो रहा है।
राष्ट्रवाद के मुद्दे पर कुछ दलों को परहेज क्यों
कोई देश तभी आगे बढ़ सकता है जब उस देश की जनता में कूट कूट के राष्ट्र के प्रति प्रेम भरा होता है और हमारे देश में भी इस बात पर बहुत ज्ञान दिया जाता है। लेकिन राष्ट्रवाद के बारे में जब बात करी जाती है तो देश के कुछ लोग उसे कट्टरता का जमा पहनाने लगते है जो बिलकुल गलत है। बहुत तो लोग एक धर्म समुदाय को लेकर अफवाह भी फैलाने लगते है कि आज देश में वो महफूज नही है। जबकि राष्ट्रवाद का एक ही धर्म होता है देश प्रेम और जो अपने देश से प्रेम करता है उसे उससे भय नही लगता लेकिन देश में कुछ लोग इसपर बहस नही बल्कि अफवाह फैलाकर भय का माहौल बना रहे है वो भी सिर्फ अपने फायदे के लिये।
राष्ट्रवाद को धर्म से जोड़कर नहीं देखना चाहिये
ये देश का दुर्भाग्य ही है कि कुछ लोग राष्ट्रवाद को एक धर्म से जोड़कर देखने लगते है जो सरासर गलत है। जो लोग इसे धर्म से जोड़ते है वही एक समुदाय में ये भय पैदा करते है कि आज स्थिति भायावह हो रही है। ऐसा करने में कुछ मशहूर लोग हैं। ये वो लोग है जो कभी सरकार के बड़े से बड़े पदो में रह चुके है। आज वो देश की छवि खराब करने के लिये विदेशी मंचो का भी प्रयोग कर रहे है। जबकि वो सिर्फ ये अफने फायदे के लिये कर रहे है। राष्ट्रवाद पर सवाल खड़ा करके ये लोग देश को कमजोर बनाने में भी जुटे है और देश को लोकतंत्र को भी क्योकि चुनाव का दौर ही ऐसा दौर होता है जब नेता सीधे जनता से जुड़ता है ऐसे में राष्ट्रवाद के मुद्दे पर जनता के बीच में अगर अपनी बात देश के लीडर रखते है तो एक मजबूत देश का निर्माण होगा लेकिन ऐसा देखने को नही मिल रहा है।
ऐसे में हम तो 5 राज्यों की जनता से यही कहना चाहेगे कि अगर आपको अपने देश से प्रेम है तो राष्ट्रवाद के मुद्दे पर जो अपना संदेश दे उसी के पक्ष में विचार करे क्योकि ऐसा ही दल देश के भविष्य को बेहतर और विकासशील बना सकता है।