बंगाल के नतीजों के बाद जो रक्त चरित्र देखा जा रहा है क्या ये सही मायने में हमारे देश का लोकतंत्र है? जवाब है नहीं, ये सिर्फ कुछ लोगों की साजिश है जो देश के लोकतंत्र पर कालिख पोतकर देश को बदनाम करने की साजिश रच रहे है।
जश्न में गुलाल की जगह बहा खून
बंगाल आज सुलग रहा है शाद भारत के इतिहास में ये पहली बार देखा जा रहा है जब चुनावी नतीजो के बाद इस तरह के हालात बने है जब एक पार्टी के वर्करों पर जगह जगह पर हमले किये जा रहे है या उनके दफ्तर को तोड़ा जा रहा है। इस तरह से टीएमसी के कार्यकर्ताओं ने जश्न मनाया और गुलाल की जगह खून ने ले ली जो लोकतंत्र को शर्मसार कर रहा है।
क्या अब लोकतंत्र खतरे में नहीं है?
इस पर चिंता जताते हुए पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने कहा ‘राज्य के विभिन्न हिस्सों से हिंसा, आगजनी और हत्याओं की कई खबरों से परेशान और चिंतित हूं।पार्टी कार्यालयों, घरों और दुकानों पर हमले किए जा रहे हैं और स्थिति चिंताजनक है।’ आज उन्होंने पश्चिम बंगाल के DGP से भी इस पर जानकार ली। हालांकि यहां महत्वपूर्ण बात ये है कि चुनाव के दौरान खुद पर हमले का आरोप लगाने वाली ममता बनर्जी हर बार की तरह इस हिंसा पर भी चुप हैं। क्योंकि ये हिंसा बीजेपी कार्यकर्ताओं और चुनाव में उसे वोट देने वाले वोटरों के खिलाफ हो रही है। आज एक सवाल ये भी है कि क्या अब लोकतंत्र में खतरे में नहीं है?
बंगाल का चरित्र रक्त की तरह लाल
पश्चिम बंगाल की राजनीति का चरित्र रक्त की तरह लाल है और मौजूदा परिस्थितियां भी काफी बदल गई हैं। अब संघर्ष लेफ्ट पार्टियों के खिलाफ नहीं है, बल्कि संघर्ष बीजेपी के खिलाफ है, और इसकी वजह है बीजेपी का बंगाल में बढ़ता प्रभाव। भले बीजेपी पश्चिम बंगाल में सरकार नहीं बना पाई, लेकिन वो 3 सीटों से 77 सीटों पर पहुंच गई है। जबकि विधान सभा में कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियों को एक भी सीट नहीं मिली। ये ऐतिहासिक इसलिए भी है क्योंकि आजादी के बाद से पहली बार ऐसा हुआ है, जब पश्चिम बंगाल में कांग्रेस और लेफ्ट को एक भी सीट नहीं मिली।
लेकिन क्या ये लोकतंत्र की सूरत होना चाहिये शायद नहीं क्योकि भारत का लोकतंत्र व विरासत है जहां गन-तंत्र का बिलकुल स्थान नही लेकिन कुछ लोग जीत के खुमार में ये भूल चुके है। उन्हे याद रखना चाहिये कि लोकतंत्र में हुए एक गलती ही पतन का कारण होता है।