प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) देशवासियों को फिट बनाने में लगे हैं. इसीलिए फिट इंडिया मूवमेंट (Fit India Movement) लॉन्च करने के लिए नेशनल स्पोर्ट्स डे (National Sports Day) का मौका चुना उन्होंने. अपील देशवासियों से कि वो सेहत ठीक रखने को अपनी रुटीन का हिस्सा बना लें. डायबिटीज, हाइपर टेंशन देश के लिए कितना बड़ा खतरा है, इसका जिक्र किया उन्होंने. हृदय रोग (Heart Attack) पचास-साठ वर्ष की जगह तीस साल की उम्र में हो रहा है, कम उम्र में हार्ट अटैक हो रहे हैं. लेकिन इन बीमारियों और चुनौतियों के बीच लाइफ स्टाइल डिसीज को दूर करने के लिए लाइफ स्टाइल को ठीक करने की नसीहत दी है. कैसे अपनी लाइफस्टाइल में चेंज लाकर सेहत को ठीक किया जा सकता है, इसलिए फिट इंडिया मूवमेंट लॉन्च करने की उन्होंने ठानी है. योग, शारीरिक व्यायाम और फिटनेस की चर्चा परिवार में रोजाना हो, इसकी भी अपील कर डाली उन्होंने, नए भारत का हर आदमी फिट बने, ये देश का लक्ष्य होना चाहिए. मोदी ने ये तक बताया कि हर सफल आदमी के जीवन में एक चीज खास है, और वो है फिटनेस के प्रति उनका जागरूक रहना.
पीएम मोदी पहले भी फिटनेस के लिए योग के महत्व को रेखांकित कर चुके हैं वैश्विक स्तर पर. भारत की सदियों पुरानी परंपरा को संयुक्त राष्ट्र के जरिये औपचारिक जामा भी पहनाया, जहां दुनिया के ज्यादातर देशों ने हर साल 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने का फैसला किया और 2015 से हर साल पूरी दुनिया में इस दिन योग के कार्यक्रम बड़े पैमाने पर होते हैं. बतौर प्रधानमंत्री पहली बार जब मोदी सितंबर 2014 में अमेरिका गए थे, तब संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक में उन्होंने योग दिवस मनाने का प्रस्ताव रखा था, जिसे बिना देर किए ज्यादातर देशों ने स्वीकार कर लिया था.
मोदी का हमेशा से रहा है फिटनेस पर जोर
नरेंद्र मोदी का फिटनेस के प्रति जो आग्रह है, वो खुद उनके अपने व्यवहार में दिखता है. इसी साल 17 सितंबर को उनहत्तर साल के हो जाएंगे पीएम मोदी. लेकिन उनकी चुस्ती और फुर्ती देखिए, तो युवा भी मात खा जाएं. रोजाना 18 घंटे काम करने के बावजूद उनके चेहरे पर कभी थकान नहीं दिखती, हमेशा तरोताजा दिखते हैं वो. यही नहीं, विदेश दौरे से लौटते हैं, तब भी आराम की जगह सीधे काम में लग जाते हैं. हाल के विदेश दौरे से लौटने के बाद भी ये नजारा दिखा, जब दिल्ली पहुंचने के तुरंत बाद वो अपने मित्र स्वर्गीय अरुण जेटली के घर पहुंच गए, परिवार जनों से मिलने और उन्हें सांत्वना देने के साथ अपने परम मित्र अरुण को श्रद्धांजलि देने के लिए. उसके साथ ही रुटीन कामकाज तो शुरू हो ही गया.
सवाल ये उठता है कि मोदी अपने को कैसे इतना फिट रखते हैं. चूंकि वो योग की वकालत करते हैं, तो सहज तौर पर समझ में आ जाता है कि वो खुद योग करते भी हैं. सार्वजनिक तौर पर भी इसकी साफ झलक मिलती है, जब अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के मौके पर जब वो खुद योग कर रहे होते हैं और कठिन से कठिन आसनों को भी आराम से कर लेते हैं. रोजाना की प्रैक्टिस के बाद ही ये संभव है.
बचपन से एक्सरसाइज करते रहे हैं मोदी
जहां तक मोदी के फिटनेस के बारे में सचेत रहने का सवाल है, इसकी शुरुआत बचपन से ही हो गई थी. उनके बचपन के दिनों के बारे में जानने वाले लोग बताते हैं कि उनके अपने गृहनगर वडनगर में वो एक बार शर्मिष्ठा तालाब से मगरमच्छ का बच्चा पकड़ लाए थे. लेकिन इस किस्से के पीछे का असली संदेश ये है कि मोदी रोजाना अपने बचपन में तैराकी करते थे और उस शर्मिष्ठा तालाब में घंटों तैरते रहते थे. तैराकी शरीर को सेहतमंद रखने के लिए सबसे बेहतरीन एक्सरसाइज है, ये सभी डॉक्टर बताते हैं, क्योंकि तैराकी के दौरान शरीर का कोई भी अंग ऐसा नहीं है, जिसका इस्तेमाल नहीं होता. यही वजह रही कि बचपन में तैराकी करने के कारण मोदी का स्वास्थ्य हमेशा बेहतर रहा.
मोदी जब किशोरावस्था में आए, तब तक तैराकी का उनका ये शौक ही उनके फिटनेस का सबसे प्रमुख पहलू रहा. इस दौरान एक और चीज जुड़ गई. वो थी आरएसएस की शाखा में बाल स्वयंसेवक के तौर पर जाना और वहां रुटीन के तौर पर सूर्य नमस्कार करना. बहुत कम लोगों को ध्यान में होगा कि जब डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार ने संघ की स्थापना 1925 में की थी, उस समय संघ की शाखा में पूरी एक्सरसाइज मिलिट्री ड्रिल की तरह होती थी, यहां तक कि संघ के स्वयंसेवक पैरों में मिलिट्री बूट पहनते थे. लेकिन संघ के दूसरे प्रमुख माधव सदाशिवराव गोलवलकर, जो संघ के लोगों के बीच गुरुजी के नाम से मशहूर हुए, उन्होंने शाखा में सूर्य नमस्कार पर जोर देना शुरू किया. खुद कभी संघ के प्रमुख रहे सुदर्शन जी ने इस बात का जिक्र किया था और कहा था कि गुरुजी ने लगातार छह साल तक शाखाओं में सूर्य नमस्कार के लिए आग्रह रखा, मुहिम चलाई और यहां तक कि नागपुर से खास तौर पर इसके लिए ट्रेनर देश के अलग-अलग हिस्सों में भेजे गए, जिन्होंने सूर्य नमस्कार के साथ-साथ योग के कुछ और पहलुओं से प्रचारकों और स्वयंसेवकों का परिचय कराया. मोदी के बचपन में शाखा जाने का सिलसिला शुरू करने तक सूर्य नमस्कार शाखा के नियमित क्रियाकलाप में शुरू हो चुका था और मोदी ने यहीं पर सूर्य नमस्कार सीखा.
संन्यासी जीवन के वक्त भी मोदी ने काफी कुछ सीखा
मोदी के जीवन में बड़ा बदलाव तब आया, जब किशोरावस्था में ही उन्होंने घर छोड़ दिया और संन्यास लेने का मन बनाया. इस सिलसिले में वो देश के अलग-अलग हिस्सों में गए और लंबे समय तक हिमालय में भी रहे, खासतौर पर केदारनाथ के पास गरुड़ चट्टी की एक कुटिया में. कई बड़े साधु-संतों के संपर्क में आए. इन साधु-संतों से उन्होंने प्राणायाम सीखा. वैसे भी माना ही जाता है कि हिमालय की कंदराओं और कुटियों में वर्षों तक साधना करने वाले साधुओं की ऐसी बड़ी तादाद रही है, जो प्राणायाम के मामले में विशेषज्ञता रखते हैं.
तैराकी, सूर्य नमस्कार और प्राणायाम, सेहत ठीक रखने के इन तीनों तौर-तरीकों पर सिद्धहस्त हो चुके मोदी जब संघ के प्रचारक बने, तो तैराकी तो पीछे छूट गई, लेकिन सूर्य नमस्कार और प्राणायाम का सिलसिला जारी रहा. संघ की शाखाओं से लेकर अहमदाबाद के संघ भवन तक, मोदी लगातार अपनी सेहत दुरुस्त रखने के लिए भारतीय परंपरा के इन साधनों का इस्तेमाल करते रहे. जब वो संघ से बीजेपी में आए, तब भी ये सिलसिला जारी रहा.
स्पॉन्डिलाइटिस से परेशान रहे मोदी
मोदी के जीवन में एक बड़ा परिवर्तन 1992-93 में आया. उस समय तक वो गुजरात बीजेपी में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे थे. पार्टी की प्रदेश इकाई के संगठन मंत्री के तौर पर पूरे राज्य में बीजेपी की नींव मजबूत करने के लिए उनको प्रवास करना पड़ता था. इसी दौरान लगातार दौरों और लंबे समय तक झुककर काम करने की वजह से उन्हें गर्दन में परेशानी शुरू हुई, स्पॉन्डिलाइटिस के तौर पर. लगातार काम करने वाले मोदी के लिए ये परेशानी का बड़ा सबब था.
इस तकलीफ से निजात पाने के लिए नरेंद्र मोदी ने बेंगलुरु की राह पकड़ी, जहां विवेकानंद योग अनुसंधान संस्थान लंबे समय से काम कर रहा है. इस संस्थान की स्थापना संघ के ही प्रमुख नेता एकनाथ रानाडे, जिन्होंने विवेकानंद केंद्र की नींव डाली थी, उनकी प्रेरणा से हुई थी. इस फाउंडेशन का एक खास केंद्र प्रशांति कुटिरम के तौर पर चलता है, जिसकी योग रिसर्च के मामले में काफी प्रसिद्धि है, खासतौर पर आवर्तन ध्यान को लेकर. यहां के संचालक डॉक्टर एचआर नगेंद्र थे, जो संघ के एक और प्रमुख नेता एचवी शेषाद्रि के भतीजे हैं.
स्पॉन्डिलाइटिस से कैसे मिली निजात
मोदी ने डॉक्टर नगेंद्र से योग की बारीकियां सीखीं थी, जिनसे संघ के प्रचारक के तौर पर भी 1984-85 में वो मिल चुके थे, शुरुआती ज्ञान ले चुके थे. लेकिन इस दफा जब मोदी आए तो तकलीफ के साथ. यहां कुछ समय बीताने और योग साधना के बाद मोदी ने ये देखा कि किस तरीके से योग अनेक बीमारियों का निदान कर सकता है. नरेंद्र मोदी को योग की विशेष क्रियाएं करने से काफी लाभ हुआ और उनकी गर्दन की तकलीफ जाती रही. यही से मोदी के मन में ये छाप बन गई कि योग का प्रचार-प्रसार पूरी ताकत से होना चाहिए, क्योंकि ये न सिर्फ आदमी को सेहतमंद रखता है, बल्कि कई बीमारियों को दूर करने का भी सबसे आसान और सस्ता तरीका है.
बीजेपी संगठन में लंबे समय तक काम करने के बाद मोदी जब अक्टूबर 2001 में गुजरात के मुख्यमंत्री बने, तो उन्होंने योग को औपचारिक तौर पर सरकार और प्रशासन से जुड़े लोगों के बीच लोकप्रिय बनाना शुरू किया. यहां तक कि जब वो अपने मंत्रियों और वरिष्ठ अधिकारियों के साथ राज्य के विकास को लेकर अपनी सरकार की योजनाएं बनाने के लिए दो-तीन दिन साथ बिताया करते थे, जिसे औपचारिक तौर पर चिंतन शिविर का नाम दिया गया था, तो वहां भी योग-प्राणायम को उसका हिस्सा बना दिया. खुद नरेंद्र मोदी अपने साथियों और अधिकारियों को योग सिखाते थे, जिसमें मदद के लिए उसी विवेकानंद योग रिसर्च फाउंडेशन से जुड़े कार्यकर्ता आते थे, जहां जाकर मोदी ने खुद कभी योग की बारीकियां सीखी थीं.
मोदी ने किस तरह योग का किया प्रसार
योग के इस सिलसिले को उन्होंने आगे और बढ़ाया और सरकारी कर्मचारियों के कामकाज में सुधार के लिए जब कर्मयोगी शिविर लगाए, तब भी योग को उसका अनिवार्य हिस्सा बनाया. बाद में गुजरात में योग यूनिवर्सिटी की नींव भी डाली और इस दौरान जो कार्यक्रम हुआ, उसमें उन्होंने कहा कि योग की प्रसिद्धि पूरी दुनिया में होनी चाहिए, योग भारत की ऐसी बड़ी विरासत है, जो लोगों के भले के लिए काम आनी चाहिए.
अपने इसी संकल्प को अमली जामा पहनाने में उन्हें तब कामयाबी मिली, जब वो देश के प्रधानमंत्री बने और अपने कार्यकाल के पहले ही साल में योग को अंतरराष्ट्रीय मान्यता दिलवाई. इस तरह 21 जून अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के तौर पर मनाया जाने लगा, यहां तक कि मुस्लिम देशों में भी. खास बात ये रही कि जब पहले अंतरराष्ट्रीय योग दिवस समारोह का मुख्य कार्यक्रम, जो दिल्ली के इंडिया गेट पर हो रहा था, वहां मंच पर सफेद कपड़ों में बाबा रामदेव के साथ सफेद कपड़ों में जो मुख्य प्रशिक्षक बैठे थे, वो वही डॉक्टर नगेंद्र थे, जिन्होंने 1984 से 2014 की अवधि में कई दफा न सिर्फ खुद मोदी को योग के गुर सिखाए थे, बल्कि इसमें मास्टरी हासिल करने के लिए अपने वोलंटियर्स को मोदी के पास शुरुआती दौर में कई महीनों तक भेजा था, ताकि वो योग में पारंगत हो सकें. मोदी ने डॉक्टर नगेंद्र को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस महोत्सव के लिए बनी कमिटि का अध्यक्ष भी बनाया था और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जब अपनी खांसी से निजात नहीं पा रहे थे, तो नगेंद्र की शरण में जाने की सलाह दी थी.
फिटनेस के लिए खाने पर खास ध्यान देते हैं मोदी
योग, प्राणायाम के अलावा मोदी की फिटनेस के जो बाकी राज हैं, उनमें उनका अपना खान-पान भी है. बहुत कम लोगों को पता है कि मोदी को खाने का ज्यादा शौक नहीं रहा है. वैसे भी बचपन में जिस तरह की गरीबी के बीच उनका पालन-पोषण हुआ, उसमें घर के अंदर कभी विलासी भोजन उन्हें नसीब हुआ. बचपन में मां हीराबा अमूमन अपनी बाकी संतानों की तरह नरेंद्र को भी बाजरे की रोटी ही देती थीं और साथ में चाय. यही नाश्ता होता था. दोपहर में कढ़ी अतिरिक्त बन जाया करती थी. रात के समय तो अमूमन खिचड़ी ही होती थी.
घर में जब कोई मेहमान आता था, तभी गेहूं की रोटी बनती थी या फिर सब्जी. ऐसे में आज के बच्चे, जिस तरह फास्ट फूड खाकर या पुराने समय में लोग अत्यधिक घी-तेल वाला भोजन कर स्थूल बन जाते थे, बचपन की गरीबी ने मोदी के साथ वो होने ही नहीं दिया.
बचपन के बाद जब मोदी संघ जीवन में आए, तो भी भोजन सादा ही रहा. संघ की परंपरा में भी आमतौर पर भोजन सादा ही होता है, गुजरात में तो रात में खिचड़ी ही बनती है. वैसे भी संघ के प्रचारक जन संपर्क के तहत स्वयंसेवकों के घर पर ही अमूमन भोजन करते हैं, जहां सादा भोजन ही परोसा जाता है, किसी विशेष तैयारी के लिए मना ही किया जाता है.
मसाला चाय के शौकीन रहे हैं मोदी
मोदी गुजरात से निकलकर जब 1995 में दिल्ली आए, तब भी उनका भोजन सादा ही रहा. 2001 में जब वो वापस गुजरात गए, तो उन्होंने अपने खान-पान में और कटौती ही शुरू कर दी। चाय का शौक, खास तौर पर मसाला चाय का शौक, हर गुजराती को होता है. मोदी भी इसके अपवाद नहीं रहे हैं. लेकिन उसकी मात्रा काफी कम कर दी, लेकिन मसाला चाय की कमी कई बार उन्हें अखरती रही.
मुख्यमंत्री काल के दौरान अहमदाबाद के एक होटल में कार्यक्रम था. कार्यक्रम खत्म कर जब वो नीचे आए, तो तत्काल बेयरे को बुलाया और कहा कि डिप वाली ग्रीन टी पीकर दिमाग खराब हो गया है, अगर ढाबे टाइप की चाय पिला सकते हो, तो पिला दो. ऐसी चाय तत्काल बनकर आई भी, मोदी खुश भी हुए, लेकिन ऐसे अवसर कम ही रहे, जब वो इस तरह से अपने मन की करते रहे हों. मुख्यमंत्री बन जाने के बाद तो उन्होंने चाय की मात्रा भी कम कर दी और बिना शक्कर वाली चाय पीने की आदत डाल ली, जो अब भी बरकरार है.
हल्का भोजन और नाश्ता करते हैं मोदी
जहां तक भोजन का सवाल है, तीन लोक कल्याण मार्ग में रहने वाले मोदी अब भी सुबह उठकर सिर्फ एक कप चाय और खाखरा जैसी कोई हल्की चीज खाकर दिन की शुरुआत कर लेते हैं, दोपहर में भी बस रोटी-भाखरी-सब्जी जैसा हल्का भोजन या फिर फल खाकर ही काम चला लेते हैं. कोल्ड ड्रिंक जैसी किसी चीज का उन्हें कभी शौक नहीं रहा, छाछ पीना पसंद है. रात में खिचड़ी खाना, ये रूटीन अब भी जारी है. लेकिन अगर समय चुनाव का हो तो रात का भोजन भी बंद कर देते हैं.
वजन नहीं बढ़ पाए, इसका खास ध्यान मोदी ने मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के साथ ही रखा. योग और प्राणायाम के साथ घर में ही कभी-कभार साइक्लिंग भी कर लेते हैं. खास बात ये है कि उन्होंने साइकिल चलाने की शुरुआत किशोरावस्था में अहमदाबाद आने के बाद की थी, क्योंकि वडनगर के घर में तो साइकिल तो थी ही नहीं. अहमदाबाद आन के बाद ही स्कूटर और कार चलाना भी सीखा, संघ कार्य और बीजेपी के लिए काम करने के दौरान.
सेहत से जुड़ी चार बातों में से तीन का विशेष ध्यान रखते हैं मोदी
कहा जाता है कि अगर आपको अपनी सेहत ठीक रखनी हो, तो चार चीजों पर ध्यान देना चाहिए-आहार, व्यायाम, स्वच्छता और आराम. इन तीनों में से पहले तीन पर तो मोदी काफी ध्यान देते हैं. आहार और व्यायाम की चर्चा तो हो ही गई, जहां तक स्वच्छता का सवाल है, बचपन से ही मोदी को अपने को साफ-सुथरा रखने का शौक है. बचपन में तो न सिर्फ तैराकी के बाद अपने कपड़े वो खुद धोया करते थे, बल्कि अपनी गाय को भी पानी पिलाना और उसे भी स्नान कराना उनके रुटीन में शामिल था, गौसेवा की भावना भी वहीं से पैदा हुई.
संघ से जुड़ने के बाद भी मोदी का स्वच्छता को लेकर आग्रह बना रहा. खुद अपनी जगह को साफ-सुथरा रखना, कपड़े हमेशा धुले हुए पहनना. देश के प्रधानमंत्री के तौर पर लाल किले की प्राचीर से भी जो स्वच्छता का अभियान उन्होंने लॉन्च किया, उसका सकारात्मक परिणाम आज पूरा देश देख रहा है. गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर भी राज्य सरकार के विभागों और कार्यालयों का उन्होंने स्वच्छता के मामले में कायाकल्प करने की कोशिश की थी, यहां तक कि छोटे बच्चों को भी बचपन से स्वच्छता के गुण हासिल हों, इसकी भी संगठित कोशिश की.
आराम का ध्यान नहीं रखते हैं मोदी
मोदी फिटनेस के लिए जरूरी एक चीज, जिसकी सदा से उपेक्षा करते आए हैं, वो है आराम. संघ के दिनों से लेकर आज तक, मोदी कभी चार घंटों से ज्यादा सोते नहीं है. रुटीन में भी रात के बारह-साढ़े बारह बजे तक जगे रहते हैं, क्योंकि देर रात का समय उनके अपने अध्ययन का होता है, मन को भाने वाली किताबें पढ़ने का होता है. लेकिन रात में देर से सोने के बावजूद सुबह पांच बजे बिछावन से उठ जाना उनकी प्रकृति में शामिल है, जिससे वो कभी समझौता नहीं करते.
आम तौर पर डॉक्टर सलाह देते हैं कि स्वस्थ रहने के लिए जरूरी है कि कम से कम छह घंटे की नींद ली जाए. लेकिन मोदी के मामले में कभी ऐसा होता नहीं. मोदी इस मामले में हमेशा कोताही बरतते हैं. सवाल उठता है कि कम नींद लेकर भी कैसे वो हमेशा तरोताजा रहते हैं. दरअसल इसका रहस्य योग, प्राणायाम और उनके आहार में छिपा है. नियमित सुबह उठने के साथ ही घंटे भर तक योग और प्राणायम करने वाले मोदी साइक्लिंग वगैरह भी कर लेते हैं. घंटे भर की ये क्रिया उनको पूरे दिन तरोताजा रखती है. यहां तक कि चुनाव के दिनों में भी एक के बाद एक वो मैराथन सभाएं करते रहते हैं, लेकिन चेहरे पर थकान नहीं दिखती है. यही हाल विदेश दौरे में भी होता है, जब एक टाइम जोन से दूसरे टाइम जोन में जाते हुए भी, विमान की घंटों लंबी यात्रा करते हुए भी, न तो गंभीर कूटनीतिक वार्ताओं के दौरान उनके चेहरे पर कोई थकान दिखती है और न ही स्वदेश लौटने के साथ ही सीधे काम में जुट जाने के दौरान.
ये योग-प्राणायाम का ही कमाल है कि ऐसे कई मौके आए हैं, जब नवरात्र के उपवास के दौरान न सिर्फ उन्होंने अंधाधुंध रैलियां की हैं, बल्कि रात में भी लगातार बैठकें की हैं. नवरात्र के दौरान सिर्फ गरम पानी पीकर मां जगदंबा की आराधना करने वाले मोदी के लिए योग-प्राणायाम और रोजाना का व्यायाम ऐसा संबल है, जो उन्हें बिना थकान के अपना काम करने देता है.
मोदी अपने इसी गुर को देशवासियों के साथ बांटना चाहते हैं और इसीलिए है ये फिट इंडिया मूवमेंट, जो उनके दिल के करीब है. अगर लोगों ने मोदी के खुद के जीवन से इस मामले में प्रेरणा ली, तो उन्हें अपनी सेहत सुधारने में मदद मिलेगी, जिससे फिट होगा आखिरकार पूरा देश. 69 साल का ये युवा प्रधानमंत्री यही संदेश दे रहा है आज, अपना उदाहरण सामने रखकर, जो हमेशा से मानता है कि दुनिया को संभालने से पहले खुद को संभालो.
(Disclaimer: This article is not written By IndiaFirst, Above article copied from News18.)

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