घूमना-फिरना शॉपिंग करना तो हर किसी को पसंद होता है। लेकिन अगर ये कहा जाए कि भारत में एक ऐसा बाजार है जो केवल भारत का ही नहीं बल्कि एशिया का अनोखा बाजार है। जहां पर शॉपिंग का मजा लेने साल भर सैलानियों का तांता लगा रहता है। अब आप सोचेंगे ऐसा क्या खास है इस बाजार में तो चलिए जानें कि पूर्वोत्तर भारत में बना ये बाजार क्यों इतना प्रसिद्ध है।
इंफाल का इमा कैथल बाजार
भारत के पूर्वोत्तर में स्थित मणिपुर राज्य की राजधानी इम्फ़ाल एक खूबसूरत शहर है। यहां पर देखने के लिए बहुत से सुंदर नजारे हैं। इन्हीं में से एक है इंफाल का इमा कैथल बाजार। इस बाजार को मदर्स मार्केट के नाम से भी जाना जाता है।
इम्फ़ाल से 29 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इमा कैथल बाजार की शुरुआत 16वीं सदी के पहले बताई जाती है। इस बाज़ार की खासियत है कि यहां लगने वाली सभी दुकानों को केवल महिलाएं चलाती हैं। इस बाजार के बसने के पीछे भी एक कहानी है। दरअसल, तब पुरुषों को चावल के खेतों में काम करने भेज दिया जाता था। तब घरों में अकेली औरतें बचती थीं। धीरे-धीरे इन्हीं औरतों ने यह बाजार बसा दिया। दुनिया का शायद यह इकलौता बाजार होगा, जहां सिर्फ और सिर्फ महिला दुकानदार ही हैं। 4000 दुकानों वाले इमा कैथल बाज़ार को एशिया के सबसे बड़े मार्केट का दर्ज़ा प्राप्त है। इमा को मणिपुर की सांस्कृतिक और सामाजिक चेतना का केंद्र माना जाता है।
इस अनोखे बाजार की खासियत है कि यहां पर महिलाएं सब्जी, मसालों, फलों से लेकर स्थानीय खाने-पीने की दुकान और मछली वगैरह भी बेचती हैं। महिलाओं की शक्ति का एहसास कराता ये बाजार लगभग पूरी दुनिया का ऐसा बाजार है जिसे केवल महिलाएं चलाती हैं।
बहुत पुराना है इतिहास
इमा कैथल एक मणिपुरी शब्द है जिसका मतलब है मां का बाजार यानी इमा का मतलब मां और कैथल का मतलब बाजार होता है। ये बाजार करीब 500 साल पुराना है जिसकी शुरूआत 16वी शताब्दी में हुई थी। स्थानीय लोगों के अनुसार पहले मणिपुर में बंधुवा मजदूरी की प्रथा थी। जिसमें पुरूषों को खेती करने और युद्ध करने के लिए शहर से दूर भेज दिया जाता था।
इस तरह के माहौल में एक ऐसे बाजार की जरूरत महसूस हुई जिसका संचालन केवल महिलाएं करती हों। तब मणिपुर की कुछ साहसिक महिलाओं ने इमा कैथल नाम से ये बाजार शुरू किया। आजादी के इतने सालों बाद भी ये बाजार लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र है।
बता दे कि 500 साल पुराने इस मार्केट की परंपरा है कि यहां पर केवल विवाहित महिलाएं ही दुकान लगा सकती हैं और ये परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है।

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