साल 1919 में वो आज (13 अप्रैल) ही का दिन था जो दुनिया के इतिहास में काली तारीख के तौर पर दर्ज हो गया| काले तारीख के बारे में जब भी जिक्र किया जाता है तो लोगो के जेहन में जलियाँ वाला बाग़ कांड उभर कर सामने आ ही जाता है कि, किस कदर एक बगीचे में शांतिपूर्ण तरीके से सभा कर रहे निहत्थे-निर्दोष लोगों पर अंधाधुंध गोलियां बरसा दी गई थीं। अमृतसर में हुए इस नरसंहार के आज भले 100 साल हो गए हो लेकिन आज तक हर भारतीय का मन उस त्रासदी के जख्मों से आहत है| ब्रिटिश हुकूमत के जनरल डायर द्वारा अंजाम दिए गए इस कायराना हमले पर ब्रिटिश सरकार ने एक लम्बे वक़्त के बाद शर्मिंदगी तो जताई है, लेकिन अब तक माफ़ी नहीं मांगी है|
दरअसल, आज ही के दिन 1919 को बैसाखी का दिन था| अंग्रेजों के रौलेट एक्ट के विरोध में बड़ी तादाद में लोग जलियांवाला बाग में सभा के लिए एकत्रित हुए थे| रौलेट एक्ट को लेकर लोगो में ब्रिटिश हुकूमत को लेकर काफी गुस्सा था| वैसे तो लोगो में आक्रोश की चिंगारी 1857 से ही फूटी थी लेकिन बावजूद इसके वो शांतिपूर्ण सभा कर रहे थे| ठीक साढ़े चार बजे सभा शुरू हुई। जब जनरल डायर बाग में गया तो दुर्गादास भाषण दे रहे थे। ठीक पांच बजकर दस मिनट पर डायर के हुक्म से गोलियां बरसने लगीं। जान बचाने के लिए लोग भागने लगे, पर रास्ता नहीं था। बाग का कुआं लाशों से भर गया और अनेक लोग कुएं में ही मारे गए। खुद जनरल डायर ने एक संस्मरण में लिखा है-‘1650 राउंड गोलियां चलाने में छह मिनट से ज्यादा ही लगे होंगे।’ सरकारी आंकड़ों के अनुसार 337 लोगों के मरने और 1500 के घायल होने की बात कही गई है, लेकिन ये महज एक अनुमान ही है| इस घटना से जुड़े जानकार बताते है कि मरने वालो की तादाद काफी संख्या में थी| चूँकि लोग के बीच बढ़ते क्रन्तिकारी गतिविधि से ब्रिटिश हुकूमत पूरी तरह से बेचैन थी| और इसी पर लगाम लगाने के लिए रौलेट एक्ट लाया गया था| लेकिन जब ब्रिटिश हुकूमत ने देखा कि लोगो इसके खिलाफ ही गोलबंद हो रहे है| तो इस तरह के क्रूर नरसंहार को अंजाम दिया गया|
जलियांवाला बाग के नरसंहार घटना के विरोध में रविन्द्र नाथ टैगोरे ने अंग्रेज हुकूमत द्वारा दिए गए सम्मान और ‘नाइटहुड’ की उपाधि लौटा दी थी| जलियांवाला बाग कांड किस कदर क्रूर नरसंहार था, इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इस घटना के बाद स्वतंत्रता संग्राम की जो ज्वाला भड़की वो देश को आजाद करके ही थमी| इस घटना से आजादी के कई नायक भी उभरे, जिनमे उधम सिंह, डॉ सैफुद्दीन, रतन चंद सरीखे लोग शामिल थे|
जनरल डायर के इस करतूत के बाद लंबे अरसे बाद ही सही लेकिन ब्रिटिश सरकार ने एक बार फिर इसे शर्मनाक घटना करार दिया है| भारत में ब्रिटिश उच्चायुक्त डोमिनिक एक्यूथ ने कहा कि 100 साल पहले हुई यह घटना एक बड़ी त्रासदी थी। यहां जो भी हुआ उसका हमें हमेशा खेद रहा है। यह बेहद शर्मनाक था। इसके साथ ही ब्रिटिश उच्चायुक्त ने शहीद स्मारक पर श्रद्धांजलि अर्पित की।
राष्ट्रपति कोविंद ने इस सन्दर्भ में अपने तरफ़ा से संवेदना व्यक्त करते हुए ट्वीट किया कि, “आज से 100 साल पहले, हमारे प्यारे स्वतंत्रता सेनानियों को जलियांवाला बाग में शहीद कर दिया गया था. एक भयावह नरसंहार, सभ्यता पर एक दाग, बलिदान का वह दिन भारत कभी नहीं भूल सकता|”
100 वर्ष पहले आज ही के दिन, हमारे प्यारे स्वाधीनता सेनानी जलियांवाला बाग में शहीद हुए थे। वह भीषण नरसंहार सभ्यता पर कलंक है। बलिदान का वह दिन भारत कभी नहीं भूल सकता। उनकी पावन स्मृति में जलियांवाला बाग के अमर बलिदानियों को हमारी श्रद्धांजलि — राष्ट्रपति कोविन्द
— President of India (@rashtrapatibhvn) April 13, 2019
उधर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस सन्दर्भ में ट्वीट कर लिखा कि, ‘आज, जब हम भयावह जलियांवाला बाग नरसंहार के 100 वर्षों का निरीक्षण करते हैं, तो भारत उस घातक दिन पर शहीद हुए सभी लोगों को श्रद्धांजलि देता है। उनकी वीरता और बलिदान को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। उनकी स्मृति हमें उस भारत के निर्माण के लिए और भी अधिक मेहनत करने के लिए प्रेरित करती है जिस पर उन्हें गर्व होगा।’
Today, when we observe 100 years of the horrific Jallianwala Bagh massacre, India pays tributes to all those martyred on that fateful day. Their valour and sacrifice will never be forgotten. Their memory inspires us to work even harder to build an India they would be proud of. pic.twitter.com/jBwZoSm41H
— Narendra Modi (@narendramodi) April 13, 2019

IndiaFirst is about protecting the country’s strategic interests and ensuring robust economic growth.