सुप्रीम कोर्ट ने आज संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) और एनपीआर की प्रक्रिया पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। मुख्य न्यायधीश न्यायमूर्ति एस.ए. बोबड़े की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि केन्द्र का पक्ष सुने बगैर नागरिकता संशोधन कानून पर रोक को मंजूरी नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने केंद्र सरकार को इस मामले में जवाब देने के लिए चार सप्ताह का समय दिया है।
बता दे कि आज सुप्रीम कोर्ट में नागरिकता संशोधन कानून को लेकर दायर 144 याचिकाओं पर सुनवाई थी। जिसमे सुप्रीम कोर्ट ने CAA पर तुरंत स्टे लगाने से इनकार कर दिया और कहा की वो सभी याचिकाकर्ताओं को नोटिस जारी करेंगे। कोर्ट ने सरकार को जवाब देने के लिए 4 हफ्ते का वक्त देते हुए कहा की कोर्ट 4 हफ्ते बाद तय करेगा कि ये मामला बड़ी संवैधानिक पीठ को दिया जाए या नहीं।
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट से सीएए के क्रियान्वयन पर रोक लगाने और एनपीआर की कवायद फिलहाल टाल देने का अनुरोध किया था। केंद्र सरकार ने कहा कि सीएए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली उन याचिकाओं पर जवाब देने के लिए उसे समय चाहिए जो उसे अभी नहीं मिल पायी है।
केंद्र की ओर से अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा कि सीएए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली 143 याचिकाओं में से करीब 60 की प्रतियां सरकार को दी गई हैं और उसे अपना जवाब दाखिल करने में समय की आवश्यिकता है।
साथ ही शीर्ष अदालत ने सभी हाईकोर्ट को CAA से जुड़ी किसी केस की सुनवाई नहीं करने को कहा है।
नागरिकता कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट में हुई आज की सुनवाई का सार:
• CAA पर स्टे लगाने से शीर्ष न्यायालय का फिलहाल इनकार
• सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता कानून पर सभी याचिकाओं पर जवाब देने के लिए केंद्र सरकार को और 4 हफ्ते का समय
• केंद्र सरकार के जवाब के बाद पांचवें हफ्ते में सुप्रीम कोर्ट की 3 जजों की बेंच CAA पर फिर से सुनवाई करेगी और तब तय होगा कि इस मामले को पांच जजों की संवैधानिक बेंच के पास भेजा जाना चाहिए या नहीं
• सुप्रीम कोर्ट ने देश भर के अलग-अलग हाईकोर्ट में CAA के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर कोई भी आदेश जारी करने पर रोक लगा दी है
• सुप्रीम कोर्ट में CAA पर दायर याचिकाओं को अलग-अलग कैटेगरी में बांट दिया है। इसके तहत असम, नॉर्थ-ईस्ट के मसले पर अलग सुनवाई की जाएगी
जहां एक तरफ ज़्यादातर याचिकाओं में नागरिकता संशोधन क़ानून की वैधता को चुनौती दी गई है, वहीं कुछ याचिकाओं में इस क़ानून को संवैधानिक घोषित करने की मांग की गई है। दायर याचिकाओं में शीर्ष न्यायालय से इस कानून पर अमल को रोकने और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर की कार्यवाही कुछ समय तक टालने की मांग की गई है। लेकिन ज्यादातर याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह क़ानून भारत के पड़ोसी देशों से हिंदू, बौद्ध, ईसाई, पारसी, सिख और जैन समुदाय के सताए हुए लोगों को नागरिकता देने की बात करता है लेकिन इसमें जानबूझकर मुसलमानों को शामिल नहीं किया गया है। संविधान इस तरह के भेदभाव करने की इजाज़त नहीं देता। याचिकाकर्ताओं ने इस क़ानून को संविधान की मूल भावना के ख़िलाफ़ और विभाजनकारी बताते हुए रद्द करने का आग्रह किया है।
गौरतलब है कि इस कानून में 31 दिसंबर 2014 या इससे पहले पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आये धर्म के आधार पर प्रताड़ना के शिकार हिंदू, सिक्ख, बौद्ध, जैन तथा पारसी समुदाय के लोगों को नागरिकता देने का प्रावधान है।
राष्ट्रापति रामनाथ कोविंद ने 12 दिसंबर 2019 को इस विधेयक को मंजूरी दी थी और तब से यह कानून बन गया है।
इससे पहले कल केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने लखनऊ में नागरिकता (संशोधन) कानून के समर्थन में आयोजित एक रैली को संबोधित करते हुए कहा है कि देशभर में जितने विरोध-प्रदर्शन हो जाएं सरकार नागरिकता कानून को वापस नहीं लेगी।
गृहमंत्री ने कहा कि इस कानून में किसी की नागरिकता लेने का प्रावधान नहीं है। उन्होंने कहा कि इस कानून को लेकर सभी विपक्षी पार्टियाँ अफवाहें फैला रहे हैं। उन्होंने कहा कि सीएए नागरिकता देने का कानून है। गृहमंत्री ने डंके की चोट पर कहा कि विरोध-प्रदर्शन के बाद भी सरकार इस कानून को किसी भी कीमत पर वापस नहीं लेगी।

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