हमारे देश में कुछ लोग है जो हर विषय पर नगेटिव राय ही रखते हैं। ऐसे लोगो ने पहले भारतीय सेना के शौर्य पर नकरात्मक राय रखी जब भारतीय सेना ने सर्जिकल स्ट्राइक किया। फिर कोविड की वैक्सीन देश में बनी तो इस पर भी सवाल उठाकर इसे मोदी की वैक्सीन का नाम दे दिया। अब उन्होंने ओलंपिक खेलों में हमारे खिलाड़ियों को भी राजनीति से जोड़ दिया है। ओलंपिक के पहले दिन मीराबाई चानू के सिल्वर पदक लाने पर कौन ऐसा देशवासी होगा जो खुश नहीं हुआ होगा। लेकिन इसे देश का दुर्भाग्य ही कहेंगे कि अपने देश में हर चीज में कोई ना कोई नकारात्मकता ढूंढ लेता है जिस पर राजनीति शुरू हो जाती है।
पदक का मजाक बनाया
दरअसल मीराबाई चानू ने टोक्यो ओलंपिक में देश के लिए जो सिल्वर मेडल जीता, उस पर देश में एक कॉर्टून छपा और यह कॉर्टून दो नजरियों के बीच फर्क को दिखाते हैं। यह आपत्तिजनक कॉर्टून देश के एक बड़े अखबार ने छापा, जिसमें ये दर्शाने की कोशिश की गई कि मीराबाई इसलिए गोल्ड नहीं जीत पाई क्योंकि महंगाई की वजह से उनके पास साधन नहीं थे। बड़ी बात ये है कि देश के विपक्षी नेताओं ने इस कॉर्टून को खूब रीट्विट भी किया और इस उपलब्धि का मजाक बनाया जो पूरी तरह से शर्मसार करने वाला विषय है। दूसरी तरफ ये बताने वाला है कि सियासत से आज की तारीख में मर्यादा बिलकुल खत्म हो चुकी है और बस विपक्ष का एक ही लक्ष्य रह गया है वो है सत्तापक्ष पर सिर्फ तंज कसना।
इससे बड़ा और क्या होगा दुर्भाग्य
जिस तरह से ये लोग हमारे खिलाडियों पर तंज कसते है उससे आप समझ सकते है कि जब ये लोग अपने मैच में उतरते है तो उनपर कितना दबाब रहता है। क्योंकि वो अच्छी तरह से जानते है कि उनकी हार पर देश के लोग ही उनका मजाक बनाने के लिये तैयार रहते है। खुद पीएम मोदी ने ओलंपिक में जाने वाले खिलाडियों से बात करते हुए साफ बोला था कि वो अपने प्रदर्शन को लेकर दबाब में ना रहे। देश का हर आदमी उनके साथ खड़ा है और जीत हार भय को निकाल कर ही आप अच्छा प्रदर्शन कर सकते है। लेकिन उसके बावजूद भी देश के कुछ लोगों के तंजो के हमारे खिलाड़ी काफी दबाब में होते है जो ठीक नहीं है। लेकिन सियासत करने वाले तो उनके कंधे पर बंदूक रखकर मोदी जी पर निशाना साधने की बस जुगत लगाये बैठते है इसीलिये तो खिलाड़ी काफी दबाव में होते है।
बड़ी बात ये भी है कि अगर भारत ओलंपिक खेलों में कोई मेडल नहीं जीतता तो यही लोग हमारे देश का मजाक बनाते और हमारे ही खिलाड़ियों की आलोचना करते। लेकिन जब वो देश के लिए मेडल जीतते हैं, तब भी ये उसमें कोई ना कोई राजनीतिक ऐंगल ढूंढ ही लेते हैं। ऐसे में यही कहा जा सकता है कि नजर का ऑपरेशन तो संभव है, लेकिन नजरिए का नहीं इसलिये ऐसे लोगों को अपना नजरिया बदलना चाहिये जिससे देश में होने वाला परिवर्तन उन्हे साफ तौर पर दिखाई दें।