अफगानिस्तान की बढ़ती फिक्र को देखते हुए भारत ने NSA अजित डोभाल को एक्टिव किया है क्योंकि डोभाल को एक ऐसा रणनीतिकार माना जाता है जो हर मर्ज की दवा साबित होते हैं।
8 साल पहले किया था आगाह
अफगानिस्तान में जो हालात है उसकी भविष्यवाणी भारत के NSA अजित डोभाल ने आठ साल पहले ही की थी। 8 साल पहले अमेरिका में ही एक कार्यक्रम के दौरान अजित डोभाल ने अफगानिस्तान, तालिबान और आतंकवाद पर आगाह किया था। उस वक्त भारत के जेम्स बांड डोभाल ने बोला था ये खतरा हम सबके लिए है। पूरी दुनिया के लिए है। आतंकवाद एक अहम खतरा है। हमें इसे गंभीरता से लेने की जरुरत है। लेकिन उस वक्त इस तरफ दुनिया के देशों का रुख साफ नही हो पाया जिसका असर अब अफगान में फिर से पनपता आतंकवादियों का साया है। हालांकि अफगान के हालात पर पीएम मोदी लगातार बैठक पर बैठक करने में लगे हैं जिससे स्थिति से ऐसे निपटा जाये जिससे अफगान में फंसे भारतवासियों को दिक्कत ना हो।
भारत की अगली रणनीति
डोभाल 8 साल पहले जिसे भविष्य का खतरा बता रहे थे वो आज पूरी दुनिया के लिए काला सच है और ये बात अमेरिका भी समझ रहा है और भारत का करीबी दोस्त रूस भी, तभी तो अफगानिस्तान को लेकर रूस के सिक्योरिटी काउंसिल जनरल निकोलाई पत्ररूशेव भी भारत के दौरे पर हैं। उनका NSA अजित डोभाल और विदेश मंत्री के साथ मंथन का दौर चल रहा है। अमेरिकी और रूसी अधिकारियों के साथ साउथ ब्लॉक में बैठकें हो रही हैं। ये बैठक उस वक्त हो रही हैं, जब अफगानिस्तान में इंटरनेशनल आतंकी मोहम्मद हसन अखुंद की अगुआई में अंतरिम सरकार बन गई है। जिसका बायोडाटा बेगुनाहों के खून से सना है। वैसे यहां एक बात समझना जरूरी है कि भारत के NSA अजित डोभाल खुद आईबी चीफ रह चुके हैं। रूस के NSA भी इंटेलिजेंस एजेंसी एफएसबी के प्रमुख रहे हैं और विलियम बर्न्स अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA के प्रमुख हैं। मतलब साफ है कि अफगानिस्तान को लेकर भारत, अमेरिका और रूस की आगे की रणनीति बहुत हद तक ग्राउंड इंटेलिजेंस पर आधारित होगी और इसमें दिल्ली की भूमिका खास होगी।
फिलहाल संकट के वक्त एक बार फिर देश के संकटमोचन के हाथ में इससे निपटने की कमान दी गई है और ये तो सब जानते हैं कि जब अजीत डोभाल किसी मसले की कमान संभालते हैं तो फिर उससे देशहित ही होता है।