धारा 370 हटने के बाद से ही धीरे धीरे कश्मीर की आवाम के मन से आतंकवाद का खतरा कम होता जा रहा है। अलगाववाद और आतंकियों के गढ़ में आज आम कश्मीरी खुल के सांस ले रहा है तो आतंकवादियों के द्वारा लोकतंत्र की रक्षा करते हुए जो लोग शहीद हुए है आज उनके नाम सड़को के नाम रखे जा रहे है। कश्मीर घाटी में ऐसे कदम से साफ हो रहा है कि अब वहां अमन का सूरज खिल चुका है। जिन दो नेताओं के नाम सड़क का नाम रखा गया है उनके नाम पीर मोहम्मद शफी और सैयद महेदी है। इससे पहले कश्मीर में सेना और जम्मू कश्मीर प्रशासन ही आतंकियों के साथ मुकाबला करते शहीद हुए सैन्य और पुलिस कर्मियों के नाम पर स्कूल व कालेजों का नामकरण कर रहा है।
आतंकवाद और अलगाववाद के बादल छंटे
आज कश्मीर की आवाम से सीधे अगर पूछा जाता है तो वो जवाब यही देती है कि कश्मीर में आतंकवाद और अलगाववाद के बादल छंट गए हैं वरना वहां के लोग बताते है कि यहां वो दौर था। जब आतंकियों के हाथों मारे गए किसी मुख्यधारा के राजनीतिक नेता के जनाजे में शामिल होने से पहले लोग दस बार सोचते थे। उनके नाम पर किसी सड़क, अस्पताल या स्कूल का नाम रखने का प्रस्ताव कोई सार्वजनिक तौर पर नहीं रखता था बल्कि किसी दूसरे के मुंह से कहलवाने का प्रयास करता था। यह कश्मीर में एक बड़ा सुखद बदलाव है। इतना ही नहीं आज घाटी में फिर से हर धर्म के नागरिक एक साथ त्योहार मनाते है। तभी तो लालचौक में जन्माष्टमी के दिन झांकी निकलती है तो सभी लोग उसमे शामिल होकर नये कश्मीर की तस्वीर पेश करते है।
कौन थे सैयद मेहदी और पीर मोहम्मद शफी
दिवंगत सैयद मेहदी तीन नवंबर 2000 को आतंकियों द्वारा किए गए आइईडी हमले में शहीद हुए थे। वह कश्मीर में शिया समुदाय के प्रमुख धर्मगुरुओं में एक थे। उनके पुत्र आगा सैयद रुहैला तीन बार बड़गाम के विधायक रहे हैं। नेशनल कांफ्रेंस के प्रमुख नेताओं में गिने जाते हैं। वह जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम के मुखर विरोधी हैं। अलबत्ता, उन्होंने कभी अपने पिता की मौत पर खुलकर आतंकियों की निंदा नहीं की और न उनके नाम पर सरकारी स्तर पर किसी अस्पताल, स्कूल, सड़क या मार्ग या किसी संस्थान को समर्पित करने का प्रयास किया।
पूर्व विधायक पीर मोहम्मद शफी नेशनल कांफ्रेंस के पुराने और दिग्गज नेताओें में एक थे। आतंकियों ने अगस्त 1991 में उनके घर में दाखिल होकर उनकी हत्या कर दी थी। उनके पुत्र पीर आफाक भी विधानसभा के विधायक रह चुके हैं। वह भी नेशनल कांफ्रेंस के प्रमुख नेताओें में गिने जाते हैं। जिस इलाके में चौक का नाम उनके पिता को समर्पित किया गया है, वह खुद उस क्षेत्र का दो बार बतौर विधायक प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। वहीं, पीर अफाक ने ट्वीट कर श्रीनगर के महापौर और जडीबल के काउंसलर का चौक का नाम उनके पिता के रखने पर आभार जताया है।
चलो देर से ही सही लेकिन कश्मीर के दिन तो बहुरे और जिस तरह से वहां विकास का काम हो रहा है उससे तो साफ लगता है कि ये सिलसिला अब रुकने वाला नहीं