संयुक्त राष्ट्र की शक्तिशाली सुरक्षा परिषद के एक माह के लिए अध्यक्ष रहे भारत का कार्यकाल समाप्त हो गया है, लेकिन इस दौरान महत्वपूर्ण वैश्विक मुद्दों पर ठोस नतीजे सामने आए हैं। इनमें अफगानिस्तान में हालात पर एक मजबूत प्रस्ताव भी शामिल हैं, जिसमें भारत के विचार एवं चिंताएं प्रतिबिंबित हुए। भारत ने यह मांग भी की कि अफगान की धरती का इस्तेमाल किसी भी देश को धमकाने या आतंकवादियों की पनाहगाह के रूप में नहीं होना चाहिए। गौरतलब है कि भारत का गैर स्थायी सदस्य के रूप में परिषद में अभी दो वर्ष का कार्यकाल चल रहा है और इसी क्रम में उसे अगस्त माह के लिए 15 सदस्यीय सुरक्षा परिषद के अध्यक्षता मिली
सफल अध्यक्षता के लिये भारत को दुनियाभर से मिली बधाई
सुरक्षा परिषद में एक महीने सफलता से अध्यक्षता करने के लिये भारत की आज समूचे विश्व में बढ़ाई हो रही है। हर तरफ से भारत के नेतृत्व करने की क्षमता को बहुत बढ़िया बताया जा रहा है। यूएन में अमेरिकी राजदूत लिंडा थॉमस ग्रीनफील्ड ने भारत को सफल अध्यक्षता के लिए बधाई दी और कहा, आपके नेतृत्व एवं लचीले रूख ने अनेक चुनौतीपूर्ण मुद्दों खासकर अफगानिस्तान में हालात से पार पाने में मदद की। इसी तरह आयरलैंड के मिशन की ओर से कहा गया, अगस्त के दौरान सफल अध्यक्षता करने पर भारत का शुक्रिया।
अफगानिस्तान पर प्रस्ताव पारित हुआ
यूएनएससी की जिस बैठक में अफगानिस्तान पर प्रस्ताव पारित हुआ उसकी अध्यक्षता विदेश सचिव हर्षवर्धन शृंगला ने की थी। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद भवन में मीडिया को संबोधित करते हुए, शृंगला ने रेखांकित किया कि भारत की अध्यक्षता में अफगानिस्तान को लेकर पारित प्रस्ताव में सुरक्षा परिषद द्वारा नामित व्यक्तियों और संस्थाओं को संदर्भित किया गया है। लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के साथ-साथ हक्कानी नेटवर्क यूएनएससी प्रस्ताव 1267 (1999) के तहत प्रतिबंधित आतंकवादी संस्थाएं हैं।
आतंकवाद से मुकाबला
श्रृंगला ने कहा था कि आज का संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का प्रस्ताव भारत की अध्यक्षता में पारित एक बहुत ही महत्वपूर्ण और समय पर की गई घोषणा है। मैं इस तथ्य को उजागर करना चाहता हूं कि प्रस्ताव यह स्पष्ट करता है कि अफगान क्षेत्र का उपयोग किसी अन्य देश को धमकी देने, उस पर हमला करने के लिए नहीं किया जाना चाहिये। यह विशेष रूप से आतंकवाद का मुकाबला करने के महत्व को भी रेखांकित करता है। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने शांतिरक्षा एवं प्रौद्योगिकी के विषय में दो महत्वपूर्ण कार्यक्रमों की अध्यक्षता की।
इस एक महीने जिस तरह से सुरक्षा परिषद को भारत ने संभाला उससे ये साफ हो जाता है कि भारत की नेतृत्व की क्षमता अपने आप में बहुत बेहतर है और इस बात को अब विश्व भी जान चुका है, परख चुका है।