कहते हैं,बीती बात को बिसारिये और आगे के बारे में सोचिये.. आज अब वही खड़े जहां हमें कुछ नया करना है जिससे हमारा देश तेजी के साथ विश्व में आगे बढ़ सके। कोरोना हो या फिर कोई दूसरी विपदा सभी को परास्त करने के लिये और नव निर्माण के लिये आज के ही दिन हमें संकल्प लेना चाहिये। नव वर्ष की इस घड़ी में सबका स्वागत है। इस अवसर पर देश की स्थिति पर गौर करते हुए वे अधूरे काम भी याद रहने चाहिए, जो देश और समाज के लिए इस नए वर्ष में अनिवार्य एजेंडा प्रस्तुत करते हैं। ऐसे में सरकार के साथ साथ हमें भी कुछ संकल्प लेना होगा अपने देश के विकास के लिये।
देश की एकता के लिए अफवाओं से रहना होगा दूर
पिछले साल की बात करे तो देश में कुछ ऐसी अफवाहओं का दौर देखा गया जिससे देश में काफी तबाही देखी गई। फिर वो किसान आंदोलन हो या फिर कोरोना काल में ऑक्सीजन की कमी की बात हो। लेकिन नये साल में हमें ऐसे लोगो से खुद को तो बचाना है साथ ही उनकी पोल भी खोलनी है जिससे वो अपना पैर देश में नही पसार पाये। इसलिये संकल्प आज करना चाहिये कि नये साल में देश को ऐसे लोगों से मुक्त किया जायेगा।
आतंकवाद से मुक्ति
बीते कई दशक से देश में आंतक का साया देखा जा रहा है लेकिन जिस तरह से बीते कुछ सालों से इसपर नकेल कसी गई है। उसे और मजबूत करने के लिए हम संकल्प करे की सरकार का साथ देंगे इतना ही नहीं सरकार की आंख और कान बनेंगे जिससे देश के दुश्मन देश का नुकसान ना कर सकें। साथ ही देश में बने सामान को खरीद कर भी देश को आत्मनिर्भर बनाने में हर संभव मदद करेंगे। वैसे भी देश ने जब से मेक इन इंडिया को अपनाया है तब से ही देश की आऱ्थिक स्थिति बेहतर होती जा रही है विदेशी निवेश तेजी से देश में बढ़ा है तो आझ देश की विकास तर 8 फीसदी से ज्यादा हो चुकी है जो शुभ संकेत है।
सियासत से अपराधीकरण से मिले मुक्ति
चुनाव, सत्ता हथियाने की लालसा और उससे जुड़े पैंतरे देशसेवा की जगह कमाऊ व्यवसाय का रूप लेती राजनीति को ही उजागर कर रहे हैं। इसी कारण राजनेताओं की साख भी घटी है। निर्वाचन आयोग की इस ताकीद से कि किसी दागी नेता को चुनाव में प्रत्याशी बनाने के लिए उचित कारण बताने होंगे, स्वच्छ राजनीति की कुछ आशा बंधती है। आज कमजोर विपक्ष किंकर्तव्यविमूढ़ हो रहा है। निजी आक्षेप, बाहुबल का उपयोग और वंशवाद के इर्द-गिर्द ही राजनीतिक कार्यक्रम चल रहे हैं। क्या नए वर्ष में इस सब पर विराम लगेगा?
शिक्षा के क्षेत्र में हो परिवर्तन
देश के जीवन को प्राणवान बनाने में शिक्षा की प्रमुख भूमिका होती है। यह सामाजिक परिवर्तन का सशक्त माध्यम है और भविष्य को गढ़ने का अवसर भी है। भारत, जो कभी वैश्विक ज्ञान केंद्र था, अब मेधावी छात्रों के लिए अनाकर्षक होता जा रहा है। यहां की संस्थाएं घोर उपेक्षा से जूझती रही हैं और पाठ्यचर्या की प्रासंगिकता प्रश्नांकित हो रही है। मौलिक अधिकार होने के बावजूद शिक्षा के अवसर सबको उपलब्ध नहीं हो रहे। नई शिक्षा नीति के तहत इन प्रश्नों पर ध्यान गया है, पर अभी बहुत कुछ करना शेष है। यह इस नए वर्ष में किया जाना चाहिए।
इसके साथ साथ स्वच्छ भारत के सपने और अपनी संस्कृति और संस्कार को जीवित करने में नव युवकों को और तेजी से जोड़ने का भी संकल्प हमें करना होगा। ये वक्त धीरे चलने का नही है इस लिये हमे तेज दौड़ना होगा जिससे देश तेजी से आगे बढ़ सके और विश्व गुरू बन सके।