इंसान अपने रुतबे, पैसे और शोहरत से ज्यादा इंसानियत के जज्बे से दिलों में जगह बनाता है। कर्नाटक के फल बेचने वाले हरेकाला हजब्बा ऐसा ही नाम हैं, जिन्होने आज देश के भीतर इसी जज्बे के चलते नाम की दौलत कमाई है तो सरकार ने उन्हे इस बाबत पद्मश्री सम्मान से नवाजा है। आपको जानकर ये अचंभा होगा कि हरेकाला कर्नाटक में फल बेचकर अपना जीवन चलाते हैं। आखिर मोदी सरकार ने इनमें क्या दिखाई दे गया कि इन्हे पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया तो चलिये हम बताते है कि इस साधारण से दिखने वाले आदमी कितना बड़ा आसाधरण दिखने वाले काम कर के दिखाया।
कौन हैं हरेकाला हजब्बा?
हरेकाला हजब्बा कर्नाटक में दक्षिण कन्नड़ा के एक छोटे से गांव न्यूपाड़ापू के रहने वाले हैं। 68 साल के हजब्बा ने तमाम मुश्किलों का सामना किया। खुद कभी स्कूल नहीं जा पाए, लेकिन उन्होंने कुछ ऐसा कर दिखाया, जिसने देश-दुनिया का ध्यान उनकी तरफ खींचा और उन्हें देश के चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार के लिए चुना गया। संतरा बेचकर गुजर-बसर करने वाले हरेकाला हजब्बा। यूं तो खुद कभी स्कूल नहीं जा पाए, लेकिन उनकी तमन्ना थी कि उनका गांव शिक्षित हो। हर घर में शिक्षा का उजियारा फैले। हजब्बा के गांव में साल 2000 तक कोई स्कूल नहीं था। इसके बाद उन्होंने अपने गांव में एक स्कूल खोलने की ठानी। हर दिन करीब 150 रुपये कमाने वाले हजब्बा ने अपनी जीवन भर की पूंजी इस काम में लगा दी। पहले एक मस्जिद में छोटे से स्कूल की शुरुआत हुई। फिर कारवां बढ़ता गया और लोग उससे जुड़ते गये। आखिर उन्होने स्कूल क्यो खुलवाया इस सवाल पर वो एक कहानी सुनाते है उनका कहना था कि एक बार एक विदेशी ने मुझसे अंग्रेजी में फल का दाम पूछा। चूंकि मुझे अंग्रेजी नहीं आती थी, इसलिये फल का दाम नहीं बता पाया। उस वक्त पहली बार मैंने खुद को असहाय महसूस किया। इसके बाद मैंने तय किया कि अपने गांव में स्कूल खोलूंगा, ताकि यहां के बच्चों को इस स्थिति का सामना न करना पड़े। हजब्बा के पास जो जमा-पूंजी थी, उससे एक मस्जिद के अंदर छोटी सी पाठशाला की शुरुआत की। लेकिन जैसे-जैसे बच्चों की संख्या बढ़ी, बड़ी जगह की जरूरत भी महसूस हुई। फिर स्थानीय लोगों की मदद से गांव में ही दक्षिण कन्नड़ा जिला पंचायत हायर प्राइमरी स्कूल की स्थापना की।
रहने को ढंग का घर भी नहीं है
हरेकाला हजब्बा ने अपने जुनून के आगे कभी हार नहीं मानी। न ही पीछे मुड़ कर देखा, भले ही राह में कितनी भी मुश्किलें थीं। जानकारो के मुताबिक उनके पास रहने के लिए ढंग का मकान तक नहीं है, बावजूद इसके उन्होंने अपनी सारी कमाई गांव के बच्चों की पढ़ाई में खर्च कर दी। अब हजब्बा इस स्कूल को प्री यूनिवर्सिटी कॉलेज के तौर पर अपग्रेड करने की तैयारी कर रहे हैं। इतना ही नही जब वो अवॉर्ड लेने राष्ट्रपति भवन पहुंचे तो उनके पांव में चप्प्ल तक नहीं थी जो उनकी सादगी और समर्पण की भावना को दिखाता है।
हरेकाला ऐसी शख्सियत समूचे देश में ये मैसेज जरूर दे पाने में सफल हो रही है कि हर देशासियों को देश हित के लिये कुछ ना कुछ करना चाहिये जिससे देश आगे बढ़ सके जैसे हरेकाला ने करके दिखाया
ऐसे ही लोगों के लिये तो फिल्म का ये गाना लिखा गया है।
किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार, किसीका दर्द मिल सके तो ले उधार
किसीके वास्ते हो तेरे दिल में प्यार जीना इसी का नाम है….