पिछले 8 महीनों से दिल्ली की सीमाओं पर किसान बिल के खिलाफ विरोध चल रहा है,लेकिन ये आंदोलन कभी हिंसा की वजह बनता है तो कभी महिलाओं और आसपास के लोगों के साथ गलत ब्यवहार के लिये जाता जाता है लेकिन अब तो हद ही हो गई जब कुछ तथाकथित किसान आंदोलन के नेता जनता के बीच जाकर चुनाव जीतकर संसद नही पहुंचे। उन्होने अपने लिये एक नकली संसद ही बना ली। चलिये आज आपको नकली संसद के नकली सांसदों से रूबरू करवाते है
तथाकथित किसानों की नकली संसद
मुद्दे कई बार असली होते हैं और कई बार नकली भी होते हैं। मुद्दे बनाने के लिए कई बार नकली धरने प्रदर्शन, नकली विरोध और नकली नारेबाजी ये सब करना पड़ता है और दिल्ली में भारत की संसद से दो किलोमीटर दूर किसानों की एक नकली संसद बनाई गई है, जिसमें ऐसे ही कुछ लोग नकली सांसद बन कर बैठे हुए हैं, जिनकी तमन्ना थी कि वो भी एक दिन देश की संसद में पहुंचें, लेकिन ऐसा हो न सका। इस प्रदर्शन में शामिल किसानों के दोनों बड़े नेता लोक सभा का असली चुनाव लड़ भी चुके हैं और हार भी चुके हैं और अब वो इन भोले-भाले किसानों का सहारा लेकर एक बार फिर सांसद बनने के लिए तड़प रहे हैं। लेकिन बड़ी बात ये है कि इस नकली संसद से दिल्ली के लोग बहुत डरे हुए हैं और उन्हें 26 जनवरी की तारीख याद आ रही है, जब इन्हीं कथित किसानों ने दिल्ली को हिंसा की आग में झोंक दिया था और दिल्ली के लाल किला पर कब्जा कर लिया था और आज एक बार फिर इन लोगों ने धमकियां देनी शुरू कर दी हैं। ऐसे में इस बार इन लोगों से ज्यादा सावधान रहने की जरूरत है। क्योकि ये अपनी महत्वाकाक्षा को पूरा करने के लिए कुछ भी कर सकते है और ये 26 जनवरी वाले दिन देखने को भी मिला था जिसमे बाद में पता चला था कि देश को बदनाम करने के लिये विदेश से इस बाबत साजिश रची गई थी।
आखिर आंदोलन कर रहे ये लोग चाहते क्या हैं?
आज आपको ये भी जानना चाहिए कि आखिर आंदोलन कर रहे ये लोग चाहते क्या हैं? क्या इनका असली मकसद कृषि कानूनों को वापस कराना है? या इनकी मंशा कुछ और है? किसानों का ये आंदोलन 26 नवम्बर 2020 को शुरू हुआ था और तब से अब तक केन्द्र सरकार, किसान संगठनों के बीच 12 बैठकें हो चुकी हैं। केन्द्र सरकार इन किसान संगठनों को ये तक कह चुकी है कि वो फसलों के MSP यानी Minimum Support Price पर लिखित गारंटी देने के लिए तैयार है और एक बैठक में सरकार ने ये भी कहा था कि वो डेढ़ साल के लिए इन तीनों कृषि कानूनों को होल्ड पर डालने के लिए तैयार है और वो इसके लिए एक कमेटी भी बना देगी, जो इन कानूनों की समीक्षा करेगा, लेकिन इसके बावजूद ये किसान तैयार नहीं हुए। एक बार फिर देश के कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने ये कहा कि सरकार इन कानूनों पर बातचीत के लिए तैयार है।
किसान नेता बातचीत पर तैयार होने से पहले ही कानून वापस लेने की बात को लेकर अड़े हुए है। जिससे यही लगता है कि इनकी मंशा आंदोलन खत्म करने की नही है बल्कि सिर्फ सियासत करने की है।