लगातार दूसरी बार अपने दम पर बीजेपी को बहुमत दिलाकर केंद्र में सरकार बनाने जा रहे नरेंद्र मोदी की तुलना लोकप्रियता के मामले में जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी से की जा रही है. विशेषज्ञ तो ये भी कह रहे हैं कि जिस तरह का जन समर्थन लोकसभा चुनावों में मोदी ने हासिल किया है, वो अभूतपूर्व है. लेकिन एक पहलू और है, जिसके बारे में लोगों का ध्यान कम ही जाता है. देश के पहले प्रधानमंत्री नेहरू या फिर उनकी बिटिया इंदिरा गांधी की लाइब्रेरी की बात तो होती है, लेकिन मोदी की लाइब्रेरी के बारे में कम ही लोगों को पता है. नेहरू और मोदी के राजनीतिक विचार तो एक-दूसरे से अलग हैं. लेकिन नेहरू की तरह ही मोदी को भी न सिर्फ पुस्तकों से लगाव है, बल्कि पुस्तक लेखन के मामले में तो वो नेहरू से आगे निकलते नजर आते हैं.
प्रधानमंत्री के तौर पर दूसरी बार शपथ लेने जा रहे हैं नरेंद्र मोदी. शपथ लेने के बाद उनका पहला भाषण कैसा होगा, इसे लेकर भी चर्चा चल रही है. संसद के केंद्रीय कक्ष में जब मोदी ने एनडीए का नेता चुने जाते वक्त भाषण दिया था, तो उनकी सरकार की दिशा का अंदाजा लग गया था.
समाज के सभी हिस्सों का विश्वास हासिल करना और गठबंधन धर्म के साथ क्षेत्रीय भावनाओं का ध्यान रखना भी उनके उस भाषण का हिस्सा था. मोदी के उस भाषण की तारीफ देश और दुनिया में हुई. उन्हें अब लोकप्रिय नेता की जगह राजपुरुष की तरफ बढ़ता हुआ देखा जा रहा है, जिसके व्यक्तित्व में उग्रता की जगह सौम्यता का अंश लगातार बढ़ रहा है.
अपने भाषणों के लिए पूरी रिसर्च करते हैं मोदी
सवाल उठता है कि आखिर मोदी अपने लाजवाब भाषणों के लिए जो तैयारी करते हैं, क्या वो सिर्फ नौकरशाहों या फिर निजी स्टाफ के दिए हुए नोट्स और शोध सामग्री के आधार पर होता है. सच्चाई ये है कि नरेंद्र मोदी खुद इसके लिए काफी तैयारी करते हैं. तैयारी कोई एक दिन नहीं, बल्कि पूरे साल चलती है. दरअसल, मोदी की ये तैयारी पिछले कई दशकों से चल रही है. मोदी को पुस्तकों से जो लगाव रहा है, उसने उनके व्यक्तित्व को निखारा है और यही वजह है कि किस मौके पर अपनी बात कैसे रखी जाए, उसे भली-भांति जानते हैं मोदी.
जब भी नेताओं की लाइब्रेरी की बात आती है, अक्सर चर्चा देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की होती है या फिर उनकी बेटी इंदिरा गांधी की लाइब्रेरी के सामने बैठी हुई तस्वीर सामने आती है. लेकिन मोदी के पुस्तक प्रेम के बारे में कम ही लोगों को पता है. हालांकि पुस्तकों से उनका ये प्रेम नया नहीं है, बल्कि उस वक्त का है जब वो वडनगर की कुमार प्राथमिकशाला में पढ़ते थे. मोदी जब कहीं नहीं मिलते थे, तो उनकी खोज अक्सर लाइब्रेरी में की जाती थी, क्योंकि अमूमन वहीं बैठे पाए जाते थे नन्हे नरेंद्र.
संघर्षमां गुजरात उनकी लिखी पहली पुस्तक थी
किशोरावस्था में ही घर छोड़ देने वाले नरेंद्र मोदी ने जब 1969 में संघ परिवार से नाता जोड़ लिया, तब भी न तो उनका पुस्तक प्रेम खत्म हुआ औऱ न ही बंद हुआ पढ़ने का सिलसिला. इसकी गवाह है उनकी पहली पुस्तक संघर्षमां गुजरात, जो आपातकाल खत्म होने के तुरंत बाद प्रकाशित हुई. मोदी उस समय महज 28 साल के थे. आरएसएस के वरिष्ठ प्रचारक दत्तोपंत ठेंगड़ी की सलाह पर मोदी ने ये किताब लिखी थी.
गुजराती में लिखी गई ये किताब इमरजेंसी के दौरान खुद भूगर्भ में रहने वाले मोदी की आंखोदेखी के साथ ही उन तमाम दस्तावेजों, किताबों और अखबारों पर भी आधारित है, जिनमें इमरजेंसी से जुड़ी हुई भयावह कहानियां मौजूद हैं. सैकड़ों की तादाद में लोगों का साक्षात्कार भी किया था मोदी ने इस पुस्तक के लिए और थोड़े समय तक दिल्ली के दीनदयाल शोध संस्थान में भी रहे थे. यही किताब बाद में आपातकाल में गुजरात के नाम से हिंदी में प्रकाशित हुई.
व्यस्तताएं बढ़ने के बावजूद नहीं कम हुआ किताबों से प्रेम
संघ में काम करने के बाद 1987 में बीजेपी की गुजरात इकाई में संगठन महामंत्री के तौर पर प्रवेश करने के बावजूद मोदी का न तो पुस्तक प्रेम रुका और न ही पढ़ने का सिलसिला. अपने प्रेरणास्रोत और मार्गदर्शक लक्ष्मणराव इनामदार को लेकर उन्होंने सेतुबंध नामक पुस्तक लिखी. अक्टूबर 2001 में गुजरात का मुख्यमंत्री बन जाने के बाद तो उनकी लाइब्रेरी भी व्यवस्थित हो गई और साथ में लेखन के सिलसिले ने भी जोर पकड़ा.
मुख्यमंत्री बनने के पहले जहां उनकी दो पुस्तकें प्रकाशित हुई थीं, वही करीब तेरह साल तक मुख्यमंत्री रहने के दौरान उनकी नौ किताबें प्रकाशित हुई. इन किताबों में जलवायु परिवर्तन को लेकर लिखी गई किताब कन्विनिएंट एक्शन तो थी ही, साथ में आरएसएस के वरिष्ठ प्रचारकों को लेकर लिखी गई उनकी किताब ज्योतिपुंज भी.
प्रधानमंत्री रहते हुए दो किताबें लिख चुके हैं मोदी
मुख्यमंत्री रहने के दौरान उनकी आखिरी पुस्तक साक्षीभाव थी, जो मां जगदंबा के साथ उनके अंतर्मन की बात पर आधारित थी. मोदी ने बतौर पीएम भी दो किताबें लिख डाली हैं एक्जाम वॉरियर्स और मन की बात. ऐसे में उनकी लिखी किताबों की कुल संख्या तेरह हो चुकी है और अगर इसमें दूसरी भाषा में अनुवादित हुई उनकी किताबों को जोड़ दें, तो कुल संख्या 27 पर पहुंच जाएगी. मोदी की किताबें अंग्रेजी के अलावा तमिल और बांग्ला जैसी क्षेत्रीय भाषाओं में भी अनुवादित हुई हैं.
मोदी की निजी लाइब्रेरी की किताबों की संख्या में भी पिछले डेढ दशक में बड़ा इजाफा हुआ है. सीएम रहते हुए मोदी की लाइब्रेरी में किताबों की कुल संख्या दस हजार तक जा पहुंची, जिसमें मुख्य तौर पर मातृभाषा गुजराती के अलावा हिंदी और अंग्रेजी में लिखी पुस्तकें शामिल थीं. ज्यादातर किताबें भारतीय दर्शन, अध्यात्म, महापुरुषों के जीवन चरित्र और राजनीतिक घटनाक्रम के साथ ही साहित्य से भी जुड़ी थीं.
सीएम की व्यस्त दिनचर्या को निभाते हुए भी मोदी या तो सुबह सबेरे या फिर देर रात पढ़ने के लिए समय निकाल लिया करते थे. इससे पहले जब वो संघ के प्रचारक थे, तो उनके बारे में मशहूर था कि कंधे से लटकते उनके झोले में हमेशा कोई न कोई नई किताब पड़ी ही रहती है.
प्रधानमंत्री बनने के बाद भी देर रात में पढ़ते हैं किताबें
प्रधानमंत्री बनने के बाद भी मोदी के पठन-पाठन में कोई कमी नहीं आई है. अब भी देर रात वो पढ़ने के लिए समय निकाल ही लेते हैं. जहां तक उनकी लाइब्रेरी में पुस्तकों का सवाल है, उनकी संख्या में पिछले पांच साल में तेजी से बढ़ोतरी हुई है.
पंद्रह हजार नई किताबें उनकी लाइब्रेरी में शामिल हुई हैं. ये किताबें दुनिया की सभी प्रमुख भाषाओं में हैं. मोदी जब विदेश प्रवास पर होते हैं, तो उनके पुस्तक प्रेम को जानते हुए मेजबान शासनाध्यक्ष और राष्ट्राध्यक्ष तो उन्हें किताबें भेंट करते ही हैं, दुनिया भर से उनके चाहने वाले भी उन्हें किताब भेजते रहते हैं. ऐसे में मोदी की लाइब्रेरी में किताबों की संख्या अब पचीस हजार के आंकड़े को पार कर चुकी है.
किताबों के अलावा मोदी की लाइब्रेरी में हैं भाषणों की वीडियो रिकॉर्डिंग और तस्वीरें
किताबों के साथ ही मोदी की निजी लाइब्रेरी में उनके तमाम भाषणों की वीडियो रिकॉर्डिंग के साथ ही हर मौके पर खीची गई तस्वीरें भी मौजूद हैं. अगर आंकड़ों के हिसाब से बात करें, तो अभी तक हुए करीब छह हजार कार्यक्रमों के दौरान खींची गई करीब चार लाख बीस हजार तस्वीरें और 3600 से ऊपर वीडियो सीडी भी उनकी लाइब्रेरी में मौजूद हैं. हर दो महीने में मोदी अपनी इस लाइब्रेरी में उन किताबों को भेजते रहते हैं, जिनकी जरूरत उन्हें नहीं रहती और कई बार जरूरत पड़ने पर पुरानी किताबों को वापस भी मंगा लेते हैं.
गांधीनगर के एक बंगले में नरेंद्र मोदी की निजी लाइब्रेरी की देखभाल करने का काम उनके साथ पहले काम कर चुके हितेश पंड्या संभालते हैं और पूरा डाटाबेस तैयार रखते हैं. खुद पेशे से पत्रकार रहे और बतौर सीएम मोदी के एडिशनल पीआरओ रहे पंड्या को पता है कि एक दिन जब मोदी के जीवन या फिर उनके राजनीतिक दर्शन पर शोधार्थी काम शुरू करेंगे, तो इस लाइब्रेरी का महत्व कितना बढ़ जाएगा. इसलिए वो पुरानी प्रेस क्लिपिंग्स और संगठन में काम करने के दौरान दिए गए मोदी के भाषणों और उनसे जुड़ी रिपोर्ट्स को भी डिजिटाइज करने में लगे हैं.
दरअसल, लगातार दो लोकसभा चुनावों में अपनी पार्टी को बहुमत दिलाकर मोदी ने स्वतंत्र भारत की राजनीति में एक नया और बड़ा अध्याय तो लिख ही दिया है, जिसके तमाम पहलुओं को संगठित तौर पर समझने में उनकी लाइब्रेरी और इसमें मौजूद भाषण के वीडियो, तस्वीरें और लिखी हुई पुस्तकें काफी मदद करेंगी. नेहरू दर्शन की तरह मोदी दर्शन को समझाने के लिए उनकी निजी लाइब्रेरी तैयार है. (फोटो साभार: हितेन पांडया)
Originally Published At: News18 Hindi

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