मोदी की कुशल विदेश नीति का उदाहरण : चाबहार पोर्ट
पीएम मोदी की विदेश नीति को लेकर विपक्ष ने कई बार हमला बोला हैं लेकिन अब मोदी सरकार की विदेश निती रंग लाती हुई दिखाई दे रही है तभी तो एक तरफ अमेरिका से 2 प्लस 2 वार्ता के जरिये दोनो देश के बीच एक नई शुरूआत हुई है तोमोदी सरकार के अथक प्रयासो लंबी वार्ता और अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के चलते हुई देरी के बाद अब चाबहार पोर्ट भारत को मिलने वाला है।
पीएम मोदी की कुशल नीति का ही असर है कि अब अमेरिका भी परोक्ष तौर पर ये मानने लगा है कि ईरान को लेकर वो भारत पर ज्यादा दबाव नही बना सकता है। और ये मोदी सरकार की एक बड़ी जीत है हालाकि भारत ने भी तय किया है कि वो ईरान से पेट्रोल लेने मे थोड़ी कमी तो करेगा लेकिन इसे बंद नही करेगा।इसके साथ साथ ईरान से जुड़ी ढांचागत परियोजनाओं को भी जारी रखेगा। इसी कडी मे भारत और ईरान अलगे 5 सालों में अपने बिजनेस को दोगुना करने के लिये भी सहमत हुए है। इसी क्रम मे चाबहार पोर्ट को ईरान भारत को अलगे महीने सौप देगा। गौरतलब है कि इस पोर्ट का निर्माण भारत ईरान मे कर रहा है। और इसकी देख रेख भारत ही करेगा।
’
इस पोर्ट का प्रबंधन भारत को मिलना पाकिस्तान की ग्वादर पोर्ट पॉलिसी का जवाब माना जा रहा है। चीन ने ग्वादर बंदरगाह को संचालन के लिए चीन को सौंप रखा है। ग्वादर और चाबहार बंदरगाह महज 80 किलोमीटर की दूरी पर हैं। चलिये अब हम आपको बताते है कि इससे क्या क्या फायदे भारत को होगे
चाबहार पोर्ट से भारत को होगें 5 बड़े फायदे
- सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि भारत पाकिस्तान को बाइपास करते हुए सीधे अफगानिस्तान तक अपना माल पहुंचा सकता है। अफगानिस्तान के जरिये भारत को सेंट्रल एशिया और रूस तक जमीनी पहुंच हासिल हो जाएगी।
- भारत अरब सागर और ग्वादर बंदरगाह पर चीन की मौजूदगी का जवाब दे सकता है। चीन सैन्य मौजूदगी के दम पर अरब सागर में अपनी गतिविधियां बढ़ा रहा है।
- ईरान से भारत को आने वाले कच्चे तेल की ढुलाई लागत में कमी आएगी। इससे भारत ईरान से होने वाली तेल खरीद बढ़ा सकता है। ईरान को तेल आयात के बदले में भारत कृषि उपज और इंजीनियरिंग सेवाएं उपलब्ध करा सकता है।
- ईरान के रास्ते अफगानिस्तान पहुंचने से भारत जरंज-डेलाराम रोड का इस्तेमाल कर सकता है। भारत ने 2009 में अफगानिस्तान के गारलैंड हाईवे तक पहुंचने के लिए इस सड़क का निर्माण कराया था। यह अफगानिस्तान के चार बड़े शहरों -हेरात, कंधार, काबुल और मजार ए शरीफ को जोड़ती है
- इस पोर्ट का संचालन भारत को मिलने से दोनों देशों के बीच संबंधों में मजबूती आएगी। इससे दोनों के बीच वाणिज्यिक और सामरिक संबंध सुधरेंगे। अफगानिस्तान में पाकिस्तान परस्त तालिबान दोनों का ही साझा दुश्मन है। पिछले कुछ दशक से भारत और अफगानिस्तान तालिबान के खिलाफ नार्दर्न एलायंस के नेताओं का समर्थन कर रहे हैं।
भारत कि शक्ति कैसे विश्व मे बढ़ेगी। तो चीन और पाकिस्तान की दोस्ती को भी ये एक करार जवाब होगा। और ये सब अगर हो रहा है तो पीएम मोदी की कूटनीति प्रयासो के चलते।