भारत एक बहुदलीय राजनीति वाला देश है| अमेरिका और इंग्लैंड जैसे देशों की तरह यहाँ गिनती की पार्टियाँ नहीं है| राष्ट्रीय पार्टियों (कुल संख्या – 6) के अलावा यहाँ देश के हर कोने से क्षेत्रीय पार्टियाँ (कुल संख्या – 52) भी है| आज़ादी के पहले से अपना वजूद रखने वाली कांग्रेस और फॉरवर्ड ब्लाक जैसी पार्टियाँ हैं, तो हर चुनाव में कुकुरमुत्ते की तरह खड़ी होने वाली नयी पार्टियाँ भी हैं|
अलग-अलग मुद्दे और अलग-अलग विचारधारा के साथ स्थापित हुई इन पार्टियों के बीच भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) एक ऐसी पार्टी के रूप में उभरी है जिसने पिछले 3 दसकों में लोकसभा में इकाई अंक (1984 में 2 सीट) की सीटों से प्रचंड बहुमत (2019 में 303 सीट) तक का सफ़र हासिल किया है|
साल | लोकसभा सीट | पार्टी लीडर | सत्ता पक्ष/ विपक्ष |
1984 | 2 | लाल कृष्ण आडवाणी | विपक्ष |
1989 | 85 | लाल कृष्ण आडवाणी | सरकार को बाहर से समर्थन |
1991 | 120 | लाल कृष्ण आडवाणी | विपक्ष |
1996 | 161 | अटल बिहारी बाजपेयी | सत्ता/ बाद में विपक्ष |
1998 | 182 | अटल बिहारी बाजपेयी | सत्ता |
1999 | 182 | अटल बिहारी बाजपेयी | सत्ता |
2004 | 138 | अटल बिहारी बाजपेयी | विपक्ष |
2009 | 116 | लाल कृष्ण आडवाणी | विपक्ष |
2014 | 282 | नरेन्द्र मोदी | सत्ता |
2019 | 303 | नरेन्द्र मोदी | सत्ता |
बीजेपी – विचारधारा आधारित पार्टी
अपने स्थापना वर्ष 1980 से लेकर अब तक बीजेपी एक ही विचारधारा “एकात्म मानववाद – Integral Humanism” पर आश्रित है| सत्ता पक्ष हो या विपक्ष, बीजेपी ने कभी भी पार्टी के अन्दर विचारधारा के ऊपर किसी व्यक्ति को तवज्जो नहीं दी| बीजेपी ने हमेशा देश हित को सर्वोपरि रखा है और देश हित के लिए समय-समय पर पार्टी ने अपनी नीतियों में बदलाव भी किया है| इसका सबसे बड़ा उदाहरण पार्टी की आर्थिक निति है, 80 के दसक में पार्टी की आर्थिक निति “स्वदेशी” विचारधारा से प्रेरित थी, लेकिन बाद में बीजेपी की सरकारों ने आर्थिक उदारीकरण और विदेशी निवेश को बढ़ावा दिया| समय के अनुकूल देश हित में सर्वोपरि नीतियों को बीजेपी ने खुले दिल से अपनाया|
संगठन सर्वोपरि – परिवारवाद और वंशवाद नहीं
जहाँ देश में अन्य पार्टियाँ व्यक्ति विशेष, परिवारवाद, और स्वार्थजनित राजनीति कर रही है; जहाँ कोई एक व्यक्ति, पार्टी और विचारधारा पर भारी पड़ जाता है| वहीँ बीजेपी में संगठन सबसे ऊपर है, इस पार्टी में संस्थापक सदस्य भी पार्टी के हित में, भविष्य को देखते हुए अपने से निचली पीढ़ी को आगे आने का मौका देते हैं|
बीजेपी ने व्यक्तिवाद को कभी तवज्जो नहीं दी, संगठन सर्वोपरि रहा| 1980 से लेकर अभी तक पार्टी ने जमीनी स्तर से शुरू कर के राष्ट्रीय स्तर तक संगठनात्मक संरचना बनाने और उसे सुदृढ़ करने पर काम किया| पद और गरिमा देने में पार्टी ने हमेशा आयु, वंश और परिवार को दरकिनार कर, व्यक्ति विशेष के योगदान, उनकी अपनी रणनीतिक और राजनितिक सूझ-बूझ और अनुभव को महत्व दिया|
संपूर्ण पार्टी, एक बड़ा परिवार
बीजेपी एक ऐसी पार्टी है, जिसमे कोई खून के रिश्तों वाला परिवार नहीं है, संपूर्ण पार्टी ही एक परिवार है| इस देशव्यापी परिवार का हर सदस्य एक दुसरे से जुड़ा है, हर किसी के सुख-दुःख में एक दुसरे के साथ रहने और एक दुसरे की सहायता करने के लिए सभी कार्यकर्ता तत्पर रहते हैं|
कुछ घटनाओं का उदाहरण लेते हैं
• अमेठी के बरौलिया में बीजेपी के वरिष्ठ कार्यकर्ता और पूर्व प्रधान की हत्या के बाद अमेठी सांसद स्मृति ईरानी ने उनके पार्थिव शरीर को कन्धा दिया
• पश्चिम बंगाल में मारे गए 54 कार्यकर्ताओं के परिवार को नरेन्द्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने का निमंत्रण दिया गया
• प्रधानमंत्री मोदी ने चंडीगढ़ दौरे के दौरान 75 वर्षीय मदन गोपाल जी जैसे वरिष्ठ कार्यकर्ता को अनायास गले लगाया और उनके बारे में ट्वीट किया
ये सारी घटनाएँ यूँ तो बहुत आम लगती है| लेकिन एक ऐसी पार्टी जो सत्ता के शिखर पर है, प्रचंड बहुमत के साथ जिसे जनता का देशव्यापी विश्वास मिला हो; उस पार्टी के शीर्ष के नेताओं के ऐसे संस्कार कोई राजनितिक पब्लिसिटी स्टंट न होकर एक अलग संस्कार है, जो बाकी राजनितिक पार्टियों में देखने को नहीं मिलता|
बीजेपी – व्यक्ति पूजा और परिवारवाद से परे एक राजनितिक पार्टी
देश में अधिकतर ऐसी पार्टियों का बोलबाला है जिसमे किसी व्यक्ति विशेष या किसी परिवार विशेष का बोलबाला है| जहाँ संगठन के सभी पद और वरिष्ठता का निर्धारण खून के रिश्तों से होता है और बाकी के कार्यकर्ता सिर्फ और सिर्फ हुक्म बजाने के लिए होते हैं| ऐसे में बीजेपी में वरिष्ठता का निर्धारण सिर्फ और सिर्फ कार्यकर्ताओं के काम, पार्टी और संगठन को उनके योगदान, और उनकी योग्यता पर होता है|

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