“ये दिल मांगे मोर”, को चरितार्थ करते हुए हँसते-हँसते देश की लिए अपनी जान कुर्बान करने वाले परम शहीद कैप्टेन विक्रम बत्रा की शहादत को 20 साल पुरे हो गए| 7 जुलाई 1999 को पॉइंट 4875 से पाकिस्तानी घुसपैठियों को पराजय का स्वाद चखाते हुए कैप्टेन बत्रा शहीद हुए थे| उनके पराक्रम, अदम्य साहस और बलिदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया था|
शहादत के बीस वर्ष
कैप्टेन बत्रा के शहादत की बीसवीं सालगिरह पर उनके जुड़वाँ भाई विशाल बत्रा ने पॉइंट 4875 पर तिरंगा फहराया| उनके साथ 14 कोर के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल वीके जोशी, 13 जम्मू ऐंड कश्मीर राइफल्स के अन्य सैन्य अधिकारी, और अपनी यूनिट के कमांडिंग अफसर के साथ विशाल को अपने भाई के शहादत स्थल पर तिरंगा लहराने का मौका मिला।
इस के बाद भावविभोर विशाल ने कहा, “जहां मेरा भाई शहीद हुआ, वह जगह मेरे लिए किसी तीर्थस्थल की तरह है। वह शारीरिक रूप से भले ही यहां मौजूद ना हो लेकिन मुझे पूरा विश्वास है कि वह यहीं कहीं पहाड़ों में रहकर हम सबकी सुरक्षा कर रहा है। मेरा विश्वास है कि सैनिक कभी मरते नहीं हैं।“
संक्षेप में कैप्टेन विक्रम बत्रा के शौर्य की गाथा
जम्मू एंड कश्मीर राइफल्स के तेरहवीं बटालियन के साथ कश्मीर में सेवा दे रहे विक्रम बत्रा को पहले पॉइंट 5140 पर कब्ज़ा करने भेजा गया था| दो टुकड़ियों में बंटे सेना के जवानों में से एक का नेतृत्व लेफ्टिनेंट संजीव सिंह जमवाल कर रहे थे और दुसरे का लेफ्टिनेंट विक्रम बत्रा| 20 जून 1999 की रात अपने अदम्य साहस और वीरता का परिचय देते हुए बिना किसी नुकसान के सेना के इन जवान वीरों में पॉइंट 5140 पर कब्ज़ा किया और पाकिस्तानी सेना के घुसपैठियों को पीठ दिखाकर भागने पर मजबूर कर दिया| इस कामयाबी की सुचना देते हुए लेफ्टिनेंट विक्रम बत्रा ने अपने कमांडिंग ऑफिसर को रिपोर्ट किया था, “ये दिल मांगे मोर”|
इस ऑपरेशन की कामयाबी के बाद विक्रम बत्रा को पदोन्नति देकर कैप्टेन बनाया गया और लेफ्टिनेंट विक्रम बत्रा कैप्टेन विक्रम बत्रा बन गए|
उनकी बहादुरी से प्रभावित होकर भारतीय सेना ने उन्हें शेरशाह तथा पाकिस्तानी सेना ने शेरखान उपनाम दिया था|
पॉइंट 4875 की ऐतिहासिक भिडंत और बत्रा का साहसिक कारनामा
जब भारतीय सेना ने पॉइंट 4875 पर कब्ज़ा किया, उस समय घायल विक्रम बत्रा आर्मी बेस में ही थे| लेकिन जब दुश्मन की जवाबी कारर्वाई में कैप्टेन नागप्पा घायल हो गए और भारतीय सेना कमजोर पड़ती दिखाई दे रही थी, कैप्टेन विक्रम बत्रा ने अपने कमांडिंग ऑफिसर से पॉइंट 4875 पर जाने की अनुमति मांगी|
विक्रम बत्रा का साथ दिया उनकी डेल्टा कंपनी के 25 वीरों ने| जैसे ही पॉइंट 4875 पर वायरलेस से संदेश गया कि शेरशाह खुद आ रहे हैं, घायल सैनिकों में हर्ष की लहर दौड़ गयी और नए मनोबल के साथ जवानों ने दुश्मनों का डट कर मुकाबला किया| रात का अँधेरा छंटने से पहले सिर्फ एक पोस्ट को छोड़कर पॉइंट 4875 के सारे ठिकाने भारतीय सेना के कब्जे में थे|
दिन के उजाले में अपनी जान की परवाह न करते हुये कैप्टेन बत्रा ने सामने से दुश्मन की पोस्ट पर धावा बोला और क्लोज कॉम्बैट में करीब ७ दुश्मनों को मौत के घाट उतार दिया|
उनके साथी बताते हैं कि जब अपने घायल साथी को बचाने के लिए उन्होंने सूबेदार रघुनाथ सिंह की सहायता मांगी तो कहा कि, “आपका परिवार है और आपके बच्चे हैं, इसलिए आप पैर की तरफ रहिये, मेरी तो शादी भी नहीं हुई मैं सर की तरफ रहूँगा|” इसी क्रम में उन्हें पहले सीने में और फिर सर में दुश्मन की गोली लगी और वो शहीद हो गए|
कैप्टेन विक्रम बत्रा जैसे वीर विरले ही पैदा होते हैं| उनकी शौर्य गाथा और उनके साहस के किस्से अभी तक भारतीय सेना में कहे और सुनाये जाते हैं| जब तक ऐसे वीरों की शहादत के किस्से हैं, दुश्मन हमारे देश की मिट्टी का एक इंच भी हिलाने में कामयाब नहीं हो सकता|
ऐसे वीरों के लिए देश भी कहता है – “ये दिल मांगे मोर”